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प्राचीन हिन्दी जैन कविः
जिनकी जन्म नगरी वनारसी के नाम के प्रभाव से ही मैंने अपने आत्म स्वरूप की सूर्य के प्रकाश की तरह निरीक्षण किया है।
__ वे महा आनन्द रस के देने वाले प्रभु पाश्वनाथ मुझे क्षण मात्र में ही सुख शांति प्रदान करें।
कविवर की कितनी सुन्दर सुझ है। पारस पत्थर जो संसार में इतना प्रसिद्ध हुआ है उसमें भगवान् पारसनाथ के नाम का ही प्रभाव है। अंतिम पद 'द्रग लीला की ललक में बड़ा ही सुन्दर और सरस है। . समदृष्टी की प्रशंसा . सज्जन सम-दृष्टी की प्रशंसा करते हुए कविवर कहते हैं। . भेद विज्ञान जग्यो जिनके घट शीतलचित्त भयो जिम चंदन । केलि करें शिव मारग में जग मांहि जिनेश्वर केलघुनंदन ॥ सत्य स्वरूप सदा जिन्ह के प्रगट्यों अवदात मिथ्यात निकंदन। शांत दशा तिनकी पहिचान करै कर जोरि वनारसी बंदन ।।
जिनके मन मंदिर में आत्म-विज्ञान का प्रकाश जागृत हुआ है और जिनका हृदय चन्दन के समान शीतल हो गया है। जो मोक्ष-महल के मार्ग में क्रीड़ा करते हैं और जो संसार मेंजिनेन्द्र देव के लघु पुत्र अर्थात् युवराज के समान हैं। असत्य (मिथ्या शृद्धान) का नष्ट करने वाले 'सत्य-स्वरूप' से जिनकी :
आत्मा प्रकाशमान हुई है ऐसे समदृष्टी भव्य आत्माओं की शांति दशा को देखकर मैं वनारसोदास हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।