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________________ कविवर वनारसीदास winni minimaammmmmmmmmmmmm जो दुष्ट मदन मद को चकनाचूर करने वाले हैं, महान हितकर धर्म का संदेश सुनाने वाले हैं और जिनका स्मरण करते ही भक्तों के सारे भय डरकर भाग जाते हैं उन जल से पूर्ण श्याम मेघों जैसे शरीर वाले और सर्प का फन ही जिनका. मुकुट है ऐसे कमठ दैत्य के उपसर्गो पर विजय पाने वाले श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं बनारसीदास नमस्कार करता हूँ। इष्ट प्रार्थना इस पद्य में कविवर ने अपने इष्टदेव के प्रभाव का बड़े सुन्दर श्रलंकारिक ढंग से वर्णन किया है। शब्द अत्यन्त मधुर और उक्किएँ बहुत ही सरस हैं। जिन्हके वचन उर धारत युगल नाग, भये धरणेन्द्र पद्मावती पलक में। जिन्हके नाम महिमा सो कुधातु कनक करै, पारस पाखान नामी भयो है खलक में । जिन्हकी जनमपुरी नाम के प्रभाव हम, - आपनौ स्वरूपलख्यो भान सों भलक में।. तेई प्रभु पारस महारस के दाता अव, . . . . . . . दीजे मोहि साता ग-लीला की ललक में ।। . जिनके वचनों को हृदय में धारण करते ही नाग और . नागनी का जोड़ा एक क्षण में ही धरणेन्द्र और पद्मावती के उत्तम देव पद को प्राप्त हुआ। - लोहे जैसी कुधातु को सोना बना देने वाला पारस पत्थर जिनके नाम के प्रभाव से ही संसार में प्रसिद्ध हुआ है। ..
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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