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________________ ५०. प्राचीन हिन्दी जैन कवि. नाटक समयसार मंगलाचरण प्रथन मंगलाचरण का यह पद्य बड़ा ही सरल और सुन्दर है इसमें केवल शब्दों की ही सुन्दरता नहीं है किन्तु भावों को मनोहर छटां और भगवान पार्श्वनाथ के उत्कृष्ठ गुणों का सुन्दर विश्लेषण है । अपने इष्ट के वास्तविक गुणों का बड़ा ही स्पष्ट वर्णन है । करम भरम जग तिमिर हरन खग, उरण लखन पन शिव मग दरसि । निरखत नयन भविक जल वरसत, हरपत अमित भविक जन सरसि ॥ सदन कदन जित परम धरम हित, सुमरत भगत भगत सव डरसि । सजल जलदतन मुकुट सपतफन, कमठ दलन जिन नमत वनरसि ॥ जो सारे जग में फैले हुए कर्मों के भ्रमजाल अंधकार का मद भंजन करने के लिए प्रतापी सूर्य के समान हैं । मोक्ष पंथ को दिखलाने वाले हैं और जिनके चरण सर्प के चिह्न से चिह्नित हैं । जिनके श्याम शरीर को देखते ही भक्तजनों के नेत्रों से आनन्द शुओं की वर्षा होती है और हृदय सरोवर लहराने लगता है । .
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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