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________________ कविवर बनारसीदास L... in in the मौलिकता का रङ्ग चढ़ा दिया है इसमें उन्होंने अपनी प्रौढ़ काव्य प्रतिभा का पूर्व अभिनय प्रदर्शित किया है । प्रत्येक शब्द में प्रभाव और नवीनता है भाषा में कहीं भी जरा सी भी शिथिलता नहीं आने पाई है। मानो कवि का हृदय सरस शब्दों का कोप ही था । शब्दों का चुनाव और उसकी योजना इतने सुन्दर रूप से की है कि छन्द को पढ़ते समय पूर्वप्रह्लाद और आनन्द की प्राप्ति होती है । प्रत्येक पद्य में अनुप्रास की सुन्दर छटा है जिससे विपय में एक नवीन जीवन सा आ गया है अनूठी उक्ति उपमाओं और ध्वनि का मनोहर संयोजन है प्रत्येक उपमा नवीन भावोद्योतक और हृदय ग्राही है उक्तियों के समावेश ने तो चनीय विषय को दर्पण की समान स्पष्ट कर दिया है। नाटक समयसार के कुछ पद्यों को यहाँ उद्धत किया जा रहा है । ग्रन्थ की संपूर्ण रचना श्र ेष्ट काव्य के गुणों से श्रोत प्रोत है जिस पद्य को देखते हैं जी चाहता है उसी को उद्धृत करलें परन्तु इतना स्थान नहीं है इसलिए यहाँ थोड़े से छन्दों को उद्धृत कर कविवर की मनोहर काव्य रचना का परिचय कराया जाता है जिन पाठकों की इच्छा अधिक बलवती हो उन्हें उक्त ग्रन्थ का पाठकर कविवर के अपूर्व काव्यरस का पान करना चाहिए ।' नाटक समयसार में ३१० दोहा सोरठा, दो सै तेतालीस सवैया इकतीसा, ८६ चौपाई ६० सवैया तेईसा बीस छप्पय अठारह कवित्त ७ अडिल्ल और चार कुन्डलिए हैं सब मिलकर सात सत्ताइस छन्द हैं । यह ग्रन्थ सं० १६९३ के आश्विन मास शुक्ल पक्ष त्रयोदशी रविवार के दिन शाहजहाँ बादशाद के शापनकाल में आगरे में समाप्त हुआ है । ४ .
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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