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________________ ४८ प्राचीन हिन्दी जैन कवि NuuN w wwwwwwwwwwwwwwwww नाटक समयसार यह ग्रन्थ भाषा साहित्य के गगन मंडप का निष्कलंक चन्द्रमा है इसकी रचना में कविवर ने अपनी जिस अपूर्व काव्य शक्ति का परिचय दिया है उसे भाषा साहित्य के अध्यात्म की चरम सीमा कहें तो अत्युक्ति न होगी। इस ग्रन्थ की संपूर्ण रचना अपूर्व आध्यात्मिकता से ओतप्रोत है इसके पढ़ने वाले को उसके द्वारा निर्मल आत्म शांति की प्राप्त होती है और वे निराकुल सुख के नन्दन निकुंज में विचरण करने लगते हैं और आत्मा की खोज में इधर उधर भटकने वालों को इससे श्रात्म दर्शन होता है। कविवर की आत्म अनुभूति के सुन्दर चित्रों का यह एक अद्वितीय अलबम ही है। इसका प्रत्येक चित्र अनूठा और एक दूसरे से बढ़कर है। चतुर चित्रकार ने इसमें इस तरह का रङ्ग भरा है जो कभी फीका नहीं पड़ता न. कभी उतरता है और जिसके रङ्ग में रङ्ग जाने पर फिर दूसरा रङ्ग नहीं चढ़ता। नाटक समयसार के मूलका भगवत् कुंदकुंदाचार्य हैं यह मूलग्रंथ प्राकृत भाषा में है उसपर परम भट्टारक श्री मदमृतचन्द्राचार्य ने संस्कृत टीका तथा कलशों की रचना की है और पंडित रायमल्लजी ने इसकी भापा बालबोधिनी टीका की है। यद्यपि कविवर ने इन्हीं तीनों के आश्रय से इस अपूर्व पंद्यानुवाद की रचना की है परन्तु अपनी सुन्दर कल्पनाओं • शव्द माधुर्यता और उत्कृष्ट भावनाओं से विभूषितकर उसपरं
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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