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________________ कविवर बनारसीदास AN ANAAAAAAAA -- गोस्वामी जी एक सच्चरित्र महात्मा थे और बनासीदासजी सत्संग के प्रेमी थे । उन्होंने कई बार तुलसीदासजी से मिलकर उनके सत्संग का लाभ उठाया। एक बार बनारसीदासजी के काव्य की प्रशंसा सुनकर तुलसीदासजी उनसे मिलने आगरा ये उनके साथ कई चेले भी थे । कविवर से मिलकर उन्हें बड़ा हर्ष हुआ । जाते समय उन्होंने अपनी बनाई रामायण की १ प्रति बनारसीदास को भेंट स्वरूप दी । 1 ३५ बनारसीदासजी ने भी पार्श्वनाथ स्वामी की स्तुति की दो तीन कविताएँ गोस्वामी जी को भेंट स्वरूप प्रदान की। कई वर्ष पश्चात् haar की गोस्वामी जी से फिर भेंट हुई तुलसीदास जी ने रामायण के काव्य सौन्दर्य के सम्बन्ध में बनारसीदास जी से पूछा, जिसके उत्तर में कविवर ने एक कविता उसी समय रचकर सुनाई: विराजै रामायण घट माँहि । मरमी होय मरम सो जानै मूरख माने नाहिं || श्रतम राम ज्ञान गुन लछमन सीता सुमति समेत । शुभोपयोग वानर दल मंडित वर विवेक रण-खेत || ध्यान धनुष टंकार शोर सुनि गई विषयादिति भाग । भई भस्म मिथ्यामति लंका उठी धारणा श्राग ॥ जरे अज्ञान भाव राक्षस कुल लरे निकांक्षित सूर | जूझे राग द्वेष सेनापति संशयगढ़ चकचूर ॥ विलखत कुम्भकरण भव विभ्रम पुलकित मन दरयाव । चकित उदार वीर महिरावण, सेतुबंध सम भाव ॥ मूर्छित मन्दोदरी दुराशा सजग चरन हनुमान । घटी चतुर्गति परणति सेना, छुटे क्षपक गुण वान ॥ .
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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