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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
अपने जीवन चरित्र में नहीं किया हैं किन्तु यह घटनाएँ इतनी प्रसिद्ध हैं कि इनके बिना आपका जीवन चरित्र अधूरा सा ही रह जाता है ।
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इसमें कुछ घटनाएं ऐसी हैं जिन पर सर्व साधारण जनता को विश्वास नहीं होगा किन्तु कविवर की महत्वता और उनकी महान् आत्म शक्ति को देखते हुए उन्हें मिथ्या नहीं कहा
जा सकता ।
कविवर की काव्य प्रतिभा के कारण प्रतिष्ठित व्यक्तियों तथा उच्च श्रेणी के राज्य कर्मचारियों में उनका विशेष समादर था । उनके गुणों और सहयता के कारण सभा में उनका बेरोक टोक प्रवेश था। किन्तु कविवर को किसी भी राज्य सत्ता अथवा प्रतिष्ठित मित्रों के द्वारा किसी आर्थिक लाभ प्राप्त करने की इच्छा नहीं हुई । यही कारण था कि उनका सर्वत्र हो विशेष समादर होता था ।
नीचे उनके कुछ विशेष गुण तथा उनके द्वारा घटित हुई कुछ जन श्रुतियों का वर्णन किया जाता है ।
गोस्वामी तुलसीदासजी का सत्संग
हिन्दी भाषा क्षेत्र में गोस्वामी तुलसीदासजी का नाम बड़ी श्रद्धा और आदर के साथ लिया जाता है उनकी बनाई रामायण का भारत में असाधारण प्रचार है । वास्तव में तुलसीदासजी भारत के हिन्दी भाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं गोस्वामीजी वनारसीदासजी के समकालीन थे। जिस समय तुलसीदासजी का शरीरपात हुआ उस समय कविवर की आयु ३७ वर्ष की थी ।
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