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कविवर बनारसीदास
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अन्त में उन्होंने अपनी आत्म शक्ति को संभाला और उसके चल से वासनाओं पर विजय प्राप्त की।
___उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया जब वे व्यवहार तथा धर्म क्रियाओं को विलकुल भुला बैठे किन्तु उन्हें मिथ्या हठ नहीं था। पता पड़ जाने पर अपनी भूल को स्वीकार करने
और उन भूलों का प्रायश्चित लेने में उन्हें संकोच नहीं होता था। उनका हृदय सरल और उदार था इसीसे आध्यात्मिकता तथा निश्चयवाद के क्षेत्र में पहुंचने पर यद्यपि कुछ समय को प्रथम आवेश के कारण वे व्यवहार से शून्य हो गए थे परन्तु पूर्ण मनन और अध्ययन के पश्चात् उन्होंने उसकी सत्ता और
आवश्यकता को स्वीकार कर लिया। वे पुनः सभी धर्माचरणों को करने लगे।
अर्द्ध कथानक में उन्होंने अपने ५५ वर्ष का जीवन वृतांत लिखा है। इसके पश्चात् उनका जीवन किस प्रकार व्यतीत हुआ इसका परिचय अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है संभवतः कविवर ने अपना अंतिम जीवन भी लिखा होगा किन्तु वह अभी तक अनुपलब्ध ही है। उनका अंतिम जीवन संभवतः सुख और शांति पूर्ण व्यतीत हुआ होगा। क्योंकि उन पर से सांसारिक आकुलताओं का बोझ कम हो जाने से उनका लक्ष्य आध्यात्मिकता की ओर अधिक हो गया था। . . अन्य घटनाएं तथा किंबंदतियां ___ कविवर के जीवन से संबंध रखने वाली अनेक घटनाएं अत्यंत प्रसिद्ध हैं। यद्यपि इन घटनाओं का उल्लेख कविवर ने