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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
लिए आ गए । कविवर इनके साथ साथ चल दिये । इधर श्वसुर महोदय अपने एक नौकर को आज्ञा दे गए कि तू इस मकान का भाड़ा चुकाकर इनका सामान अपने घर ले आना । नौकर ने आज्ञा का पालन किया । भोजन के बाद बनारसीदास जी को यह घटना ज्ञात हुई तब श्वसुर महोदय ने हाथ जोड़कर कहा कि आपको दुःखी नहीं होना चाहिए यह घर आपका ही है। आपके प्रसन्नता पूर्वक यहाँ रहने से मुझे अत्यन्त हर्ष होगा। उनके अनुरोध को कविवर का लज्जाशील हृदय न टाल सका । श्वसुर महोदय ने उन्हें दो माह तक बड़े प्रेम और आदर के साथ रक्खा ।
अर्द्ध कथानक का उपसंहार
अपने अर्द्ध कथानक ग्रन्थ में कविवर ने ५५ वर्ष की जीवन घटनाएँ अंकित की हैं इस ५५ वर्ष के जीवन में वे अनेक घटना चक्रों में ग्रस्त रहे हैं। उनका जीवन कष्ट, यातनाओं और चिन्ताओं का स्थान ही बना रहा है गार्हस्थ जीवन में उन्हें ऐसा अवसर बहुत ही थोड़ा मिला है जिसमें वे सुखी रहे हों । किन्तु कविवर ने सभी कष्टों और यातनाओं को बड़ी निर्भीकता और साहस के साथ सहन किया है। इतने समय में उनका हृदय अनेक विकल्पों और मानसिक निर्वलताओं से युद्ध ही करता रहा है किन्तु अन्त में उन्होंने अपने मन पर विजय प्राप्त की और अपने मानवीय कर्तव्यों में उन्होंने आशातीत सफलता प्राप्त की है । उनपर वासनाओं का आक्रमण हुआ उन्होंने कविवर पर अपना पूर्ण प्रभाव डाला और कुछ समय के लिए वे उनके प्रभाव में आ गए। किन्तु वे अपने आपको एक दम भूल नहीं गए । आत्मा की आवाज को उन्होंने बिलकुल भुला नहीं दिया और
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