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कविवर बनारसीदास
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कविवर को विद्या पढ़ने तथा काव्य रचना की ओर अत्यन्त प्रेम था । इस प्रेम में वे व्यापार आदि कार्यों से बिलकुल ही विमुख हो गए थे। उस समय उनके पिता उन्हें निम्न प्रकार कहकर समझाते थे ।
बहुत पढ़ें वामन अरु भाट, वणिक पुत्र तो बैठें हाट । बहुत पढ़ें सो मांगे भीख, मानहु पूत बड़ों की सीख ॥
उस समय के मनुष्यों की आयु
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उस समय के मनुष्यों की आयु का अनुमान कितना था इसका वर्णन उन्होंने अपने चरित्र में किया है ।
उन्होंने अपने ५५ वर्ष का जीवन वृतान्त लिखते हुए अर्द्धकथानक को समाप्त किया है । अर्द्ध कथानक समाप्त करते समय आप अपनी आयु के सम्बन्ध में निम्न प्रकार लिखते है:
वरस पंचावन ए कहे, वरस पंचावन और । वाकी मानुप आयु में, यह उतकिष्टी दौर ॥ वरस एक सौ दश अधिक - परमित मानुप आय । सौलह से अट्ठानवे, समय बीच यह भाव ॥
संवत् १६५८ में मनुष्य की आयु का भाव एक सौ दश वर्ष का था ।