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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
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सस्ता पन
बादशाह अकबर के समय में भारतवर्ष में कितना सस्तापन था इसका परिचय कविवर ने अपनी एक घटना में दिया है।
एक समय कविवर व्यापार के लिए आगरे आये थे किन्तु उनके सभी जवाहरात मार्ग में गिर जाने के कारण पास में एक फूटी कौड़ी भी नहीं बची। द्रव्य के अभाव के कारण उन्होंने बाजार जाना भी छोड़ दिया। वे एक धर्मशाला में ठहरे हुए थे। उन्होंने अपने मनको बहलाने के लिए मृगावती की कथा पढ़ना प्रारम्भ की। कथा सुनने के लिए कई श्रोतागण आने लगे। उनमें एक कचौड़ीवाला भी था। आप उसके यहाँ से प्रतिदिन दोनों समय कचौड़ियाँ उधार लेकर खाने लगे। आपने सात माह तक दोनों समय पूरी कचौड़ी खाई । अन्त में कचौड़ी वाले का हिसाब किया गया। हिसाब करने पर दोनों समय के भोजन का सात माह का कुल १४) चौदह रुपये का जोड़ हुआ। आगरे जैसे शहर में दोनों समय की पूरी कचौड़ियों के भोजन का खर्च केवल दो रुपया मासिक थाना वह कैसा सस्ता समय था आज कल तो दो रुपये में एक आदमी का सवेरे का चाय पान भी पूरा नहीं होता। विद्या की दशा. . . - उस समय जनता में विद्या पढ़ने के प्रति अत्यन्त उपेक्षा थी। विद्या पढ़ना ब्राह्मण और भाटों का ही कर्तव्य समझा जाता है। इसके विषय में कविवर ने एक घटना का चित्रण किया है।