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कविवर बनारसीदास
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MOVINE Namnamo
हंडवाई गाड़ी कहुँ और, नकद माल निरभरमी ठौर । भले वस्त्र अरु भूपण भले, ते सब गाढ़े धरती तले ॥ घर घरसवनि विसाहे शस्त्र, लोगन पहिरे मोटे वस्त्र | ठाड़ों कंवल अथवा खेस, नारिन पहिरे मोटे वेस | ऊँच नीच कोउ नहिं पहिचान, धनी दरिद्री भये समान । चोरि धाढ़ दीसे कहुँ नाहिं, योही अपभय लोग डराहिं ||
दश वारह दिन में बादशाह जहाँगीर के गद्दी पर बैठने से सर्वत्र शांति हो गई। धनी लोगों के वस्त्र और आभूपण चमकने लगे और दरिद्री फटे वस्त्र पहनकर भीख माँगने लगे । प्लेग का प्रकोप
संवत १६७३ के फागुन मास में श्रागरे में उस रोग की उत्पति हुई जो आज सारे भारतवर्ष को अपना घर बनाए हुए है जिसका नाम सुनकर स्वस्थ मानव का हृदय भी भय से काँप उठता है और जिसकी निर्दय दाढ़ों ने लक्षावधि प्रजा को अपना ग्रास बना लिया है। जिसका इलाज करने में डाक्टर लोग असमर्थ हो जाते है हकीम जवाब दे देते हैं और वैद्य वगले भोंकते हैं। जिसे अंग्रेजी में प्लेग और हिन्दी में मरी कहते हैं. कविवर ने उसका वर्णन इस प्रकार किया है।
इसही समय ईति विसतरी, परी आगरे पहिली मरी । जहाँ तहाँ सब भागे लोग, परगट भया गांठ का रोग | निकसै गांठ मरै छिन मांहि, काहू की बसाय कछु नाहिं । चूहे मरें वैद्य मर जाँहि, भय सौं लोग अन्न नहिं खांहि ॥