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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
पास उतना बड़ा. हीरा नहीं था इसलिए वे न दे सके अव क्या था हाकिम का क्रोध उबल पड़ा उसने सब जौहरियों को जेल में डाल दिया इतने पर भी उसका क्रोध शान्त न हुआ तब उसने उन सवंको कोड़ों से पिटवाकर छोड़ दिया।
एक समय आगानूर वनारस और जौनपुर का हाकिम बनकर आया । वह बड़ा क्रूर था उसने प्रजा पर बड़ी क्रूरता का व्यवहार किया। कविवर कहते हैं
आगा नूर बनारसी, और जौनपुर बीच । कियो उदंगल बहुत नर, मारे कर अधमीच ।। हक नाहक पकरे सकल, जड़िया कोठीवाल । हुँडोवाल सराफ नर, अरु जौहरी दलाल ॥ कोई मारे कोररा, कोई वेडी पाय । कोई राखे भारवसी, सबको देय सजाय ॥
राज्यगद्दी परिवर्तित होने के समय जनता में कितना भय और आतङ्ग छा जाता था इसका थोड़ासा वर्णन सुनिए ।
संवत् १६६२ में बादशाह अकबर का स्वर्गवास हो गया। अव क्या था राज्य में चारों ओर भयानक कोलाहल मच गया। लोगों को अपने नेत्रों के सम्मुख विपत्ति मुंह फाड़कर खड़ी दिखने लगी। सब अपनी अपनी जमा पूंजी की रक्षा में सतर्क हो गए।
घर घर दर दर दिये कपाट । हटवानी नहिं बैठे हाट ।।