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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
इस विचार ने उनके जीवन में काया पलट कर दिया शिव पूजा पर से उनका विश्वास हट गया और सदाशिव का पूजन सदा के लिए समाप्त हो गया।
उनका हृदय ज्ञान के प्रकाश में विचरण करने लगा वे कोमल शान्त रस के स्रोत में डूबने लगे। सद्विचार की लहरें क्षणक्षण में उनके मानस सरोवर में उमड़ने लगीं उनका मन विलास के बंधन से निकलने का प्रयत्न करने लगा। अंत में सद्विचारों की पूर्ण विजय हुई। मदन देव का शाषन समाप्त होगया। अव कविवर बनारसीदासजी के पास श्रृंगार को स्थान नहीं था।
___ संध्या का सुहावना समय था। बनारसीदासजी अपनी मित्र-मंडली के साथ गोमती नदी के पुल पर बैठे हुए वायु सेवन कर रहे थे, सरिता की तरल तरङ्गों के साथ मन की दौड़ की तुलना करते हुए वे विचारों में मग्न हो रहे थे। बगल में एक सुन्दर पुस्तक थी। मित्रगण चुपचाप नदी की शोभा देख रहे थे। कविवर अनायास ही अपने मनही मन में बड़-वड़ाने लगे 'जो एक बार भी मिथ्या बोलता है वह दुर्गति का पात्र बनता है ऐसा महात्माओं का कथन है। ओह ! मैंने तो झूठ का एक पुराण ही वना डाला स्त्रियों के कपोल कल्पित नख-शिख तथा हाव-भाव विभ्रम विलासों की मिथ्या रचना कर डाली. मेरी क्या दशा होगी। मैंने यह कार्य अच्छा नहीं किया। मैं तो अब पाप का भागी हो ही चुका हूं परन्तु इसे पढ़कर लोग पाप के भागी क्यों हों। इन विचारों ने कवि के हृदय को डगमगा दिया वे आगे और कुछ न विचार सके। किसी की सम्मति की प्रतीक्षा किए बिना ही उन्होंने गोमती के उस अथाह और भीषण प्रवाद में रसिक जनों का जीवन स्वरूप, स्वनिर्मित शृंगार इस पूरित महाग्रंथ को डाल