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कविवर बनारसीदास
__ इस समय कविवर की जीवन नौका कविता और विलासिता के भ्रमर में पड़ी हुई थी। जिसका झोका तेज होता था वे उसी ओर वह जाते थे।
कविवर को कविता करने की रुचि १४ वर्ष से ही हो गई थी। इस समय वे नवरस पूरित सुन्दर कविता करने लगे थे। इस समय आपने लगभग एक हजार पद्यों की रचना की जो नवरसों से युक्त होने पर अधिकाशतः श्रृंगार रस से ही परिपूर्ण थी। शृंगार वर्णन में ही आप उस समय अपनी लेखनी को सार्थक किया करते थे।
इस समय आपके अनेक मित्र बन. गए थे। स्वार्थी मित्रों को और क्या चाहिए था। रात दिन अखाड़ा जुड़ा रहता। कविता का दौर चलता, प्रशंसा के पुल बँधते और हँसी का फब्बारा छूटता। बस आपका यही नित्यप्रति का कार्य था।
माता पिता समझाते थे, गुरुजन उपदेश देते थे किन्तु कमलपत्र पर पड़े हुए जल विन्दु के समान उनके मन पर उपदेश का जल नहीं ठहरता था। यौवन के वेग में बढ़ने वाले विलासिता के झरने का रुकना कठिन हो गया था। वे सब उपदेशों को एक कान से सुनते और दूसरे कान से निकाल देते। अन्त में विलासिता में वे इतने मस्त हो गए कि पढ़ना, लिखना और घर. का कार्य करना भी उन्होंने छोड़ दिया।
जहाँ कामदेव का राज्य होता है वहाँ विचार शक्ति नहीं रहती, सबुद्धि भाग जाती है और अनेक अनर्थ अपना अड्डा 'जमा लेते हैं। काम ग्रस्त मनुष्य वेषधारी साधु, फकीरों और यंत्रमंत्रों द्वारा धन लाभ और कार्य सिद्धि की अधिक इच्छा रखते