________________
प्राचीन हिन्दी जैन कवि
उनकी ख्याज की मान्य भक्ति से म उनसे इतना के पास रहकर
तजि कुल कान लोक की लाज ।
भयो बनारसि आसिख वाज । जिस समय बनारसीदास अनंग रंग में मस्त थे उसी समय जौनपुर में भानुचन्द्र यति नामक एक महात्मा आए थे वे श्वेताँवर संप्रदाय के प्रसिद्ध साधु थे। सदाचारी और विद्वान थे उनकी ख्याति सुनकर कवि वनारसीदासजी उनके दर्शन को गए। यति महाराज की सौम्य मुद्रा देख और उनका पवित्र उपदेश सुनकर कविवर का हृदय भक्ति से भर गया वे नित्य-प्रति उनके पास जाने लगे। धीरे-धीरे कविवर का उनसे इतना स्नेह बढ़ गया कि वे दिन भर उन्हीं की सेवा में रहने लगे। उनके पास रहकर उन्होंने पंच सधि, सामायिक, प्रतिक्रमण, छन्द, शास्त्र, श्रुतवोध, कोष और स्फुट श्लोक आदि विषय कंठस्थ कर लिए और सदाचार की प्रतिज्ञा भी लेली। इतना सब कुछ होने पर भी उनके काम का नशा कम न हुआ उनकी यही हालत रही
कबहूं आइ शब्द उर धरै, . कवहं जाइ आसिखी करै, पोथी एक बनाई नई, मित हजार दोहा, चोपाई, तामें नवरस रचना लिखी,
पै विशेष वरनन आसिखी, कै पढ़ना कै आसिखी, मगन दुहू रस मांहि । खान पान की सुधि नहीं रोजगार कछु नाहिं ॥.