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भैया भगवतीदास
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शयन करत है रयनं को, कोटि ध्वज अरु रंक। सुपने में दोऊ एक से, वरतें सदा निशंक ॥
रात को करोड़पति और भिखारी दोनों सोते हैं। वह दोनों स्वप्न में एक से हैं और निशंक होकर कियाएं करते हैं।
मोह अपने जाल में फंसाकर जीवों को किस तरह नचाता है इसका वर्णन सुनिए। नटपुर नाम नगर इक सुंदर, तामें नृत्य होंहि चहुँ ओर । नायक मोह नचावत सबको, ल्यावत स्वांग नये नित ोर ॥ उछरत गिरत फिरत फिरका दै, करत नृत्य नाना विधि घोर। इहि विधि जगत जीव सव नाचत, राचत नाहिं तहाँ सुकिशोर ।। कर्मन के वश जीव है, जहँ खेचत तहँ जाय । ज्योहि नचावै त्यों नचै, देख्यो । त्रिभुवन राय ॥
संसार रूपी एक सुन्दर नगर है उसमें चारों ओर नृत्य हो रहा है वहाँ मोह नायक सबको. नचाता है। सभी प्राणी नित्य प्रति नये नये स्वांग रखकर आते हैं और उछलते गिरते इधर उधर घूमते हुए अनेक तरह का नृत्य करते हैं।
मोह राजा जिस तरह से ही नचाता है वे सब जीव उसी तरह नचते हैं परन्तु जो आत्मज्ञानी आत्मा है वह उस नृत्य देखने में मन नहीं होता।
. इस तरह :कर्म के वश में पड़ा हुआ जीव -जहाँ वह खींचते हैं, वहीं जाता है और तीन लोक का राजा.-होकर यह चैतन्य उसी तरह नाचता है जिस तरह कर्म इसे नचाते हैं।
__ भाई ! इस संसार के निवासी-बनकर क्यों वेफ्रिक बैठे हो तुम्हें कुछ अपने चलने की चिन्ता है। .