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________________ १७४ प्राचीन हिन्दी जैन कवि w wwLAM बल, वीर्य) इन चारों को नहीं देख सकता यह चारों खूट की रीति है ? • जे लागे दश वीस सो, ते तेरह पंचास। . ., सोलह बासठ कीजिए, छाँड़ चार को बास ॥ जो दश+बीस तीस, तृष्ना से लगे हुए हैं वह तेरह+ पचासत्रेसठ हैं अर्थात मूर्ख है इसलिए सोलह +बासठ अठहत्तर आठ कर्मों को हतकर तरो और चार गति का बास छोड़ दो, इसमें संख्या शब्दों से श्लेष अर्थ गृहण कर कवि ने अपना चातुय दिखलाया है। .. बालापन, गोकुल बसे, यौवन मनमथ राज । वृन्दावन पर रस रचे, द्वारे कुवजा काज ॥ . .. -कृष्ण जो बालापन में गोकुल रहे, यौवन में मथुरा और फिर कुवजा के रस में मग्न होकर वृन्दाबन रहे । इसी तरह हे जीव ! तू बालापन में इन्द्रियों के कुल की केलि में रहा जबानी में कामदेव के वश में रहा फिर वृन्दावन जो कुटुम्ब समूह उसमें निवास किया और अन्त में कुबजा कुमति के कार्य में फंसा रहा ? । जेतन की संगति किए, चेतन होत अजान । ते तन सो ममता धरै, आपुनो कौन सयान ॥ जिस तन की संगति करने से, चेतन अज्ञान बनता है। उस तन से ममता रखने में क्या होशयारी है। अनित्य पंचविंशतिका इसमें संसार की अनित्यता का २५ काव्यों में बड़ा सुन्दर वर्णन किया है प्रत्येक पद्य सरस और मनन.करने योग्य है। ।
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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