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________________ 1 भैया भगवतीदास अष्टम गजनि के हलके हंकारि दे, मोह के सुभट सव धँसत सूरे | एक में एक जोधा महा भिड़त हैं, afafe बलवंत मदमंत परतीत के, जीव की फौज में सत्य बहु धसत माते । श्राते ॥ गजनि के पुञ्ज मारि के मोह की फौज को पलक में, करत श्रमसान मद मत्त मार गाढ़ी मचै, सुभट कोऊ ना चचै, घाव चिन खाये दुहुं दलन मांही। एक तैं एक योधा दुहुँ दलन में, कहते कछू उपमा चनत नांही ॥ 1. मोह सराग भाव के वान, मारहि खेच जीव को तान । निज वाण जीव वीतरागहि मारहि धनुप मोह रुद्र वरछी गह चेतन सन्मुख घात हंस दयालु भाव की निजहिं चचाय करै पर ध्याय, इहि ठाय ॥ लेय, जीत्यो चेतन' भयो वाजहिं शुभ वाजे पूरे ॥ करे | ढाल, काल ॥ टेक । चेतन लै यमंघर मारि हरी वैरिन लेकर क्षायिक चक्र प्रधान, वैरनि मारि करहिं घमसान ॥ अनंद, सुख कंद । सुचिवेक, की 4 १७१
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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