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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
दानों सेनाओं में घोर युद्ध होता है और अन्त में चैतन्य की विजय होती है । इसका वर्णन कविवर ने बड़ा सुन्दर किया है।
सूर वलवंत मद मत्त महा मोह के,
निकसि सब सेन आगे जु आये। मारि घमसान महा जुद्ध वहु क्रुद्ध करि,
एक ते एक सातों सवाये॥ वीर सुविवेक ने धनुप ले ध्यान का, ___ मारि के सुभट सातों गिराये। कुमक जो ज्ञान की सैन सव संग धसी,
मोहि के सुभट सूर्दा सवाये॥ रणसिंगे वजहिं कोऊ न भज्जहिं,
करहिं - महाः . दोऊ . जुद्ध । इत जीव हंकारहि, निज पर वारहिं,.
करहँ अरिन को रुद्ध । उत मोह चलावे ‘सव दल धावे,
चेतन एकरो आज । इहि विधि दोऊ दल, कल नाहीं पल,
करें युद्ध । रण साज॥ मोह की फौज सों नाल गोले चलें, . · आय चैतन्य के दलहि लागें।
आठ मल दोप सम्यक्त के जे कहे, __. तेहि अव्रत में मोह दागें। जीव की फौज सों प्रवल गोले चलें, . ___ मोह के दलनि को आय मारें। अन्तर विराग. के भाव बहु भावता, - . ताहि प्रतिभास मोह धीर नहिं . धारें।