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भैया भगवतीदास
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दै घोंसा सब चढ़े जहाँ चेतन वसै।
आये पुर के पास न, आगे को फँसै ॥ फौज के आने पर ज्ञान चैतन्य से कहता है। तवहिं शान निःशंक है, वोले प्रभु सन वेन ।
चाकर एकहि भेजिए, गह लावे सब सैन । कहा विचारो मोह, जिस ऊपर तुम चढ़त हो।
भेज सेवक सोह, जो जीवत लावै पकड़। हे प्यारे चेतन सुनो, तुम से मेरे नाथ ।
कहा विचारो कूर वह, गहि डारों इक हाथ ॥ चैतन्य उत्तर देता है। सूरन की नहिं रीति, अरि पाए घर में रहै।
के हार के जीति, जैसी है तैसी वनै ॥ तव ज्ञान अपने विवेक, क्षमा आदि गुणों की फौज लेकर चढ़ाई करता है। ज्ञान गंभीर दल- बीर संग ले चढ्यो,
एक तें एक सव सरस सूरा। कोटि अरु संखिन ' न पार कोऊ गनै,
ज्ञान के भेद दल सवल पूरा॥ चढ़त सव वीर मन धीर असवार है,
देख अरि दलन को मान भंजे। पेख जयवंत जिन चंद सबही कहै,
आज पर दलनि को सही गंजै॥ . वजहिं रण तूरे, दलवल पूरे, चेतन गुण गावंत । सूरा तन जग्गो, कोऊन भग्गो, अरि दल पै धावंत ॥