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भैया भगवतीदास re. .... . .nrn. . . .................mar mmmm. ऐसे दुष्ट पापी जे संतापी पर जीवन के,
ते तो सुख सम्पति सों केसे के अघायेंगे। अहो ज्ञानवंत संत तंत के विचार देखो,
वौवै जे वंचूल ते तो श्राम कैसे खावेंगे।
भाई ? हिंसा करनेवाले, अगर स्वर्ग जाँयगे तो नर्क में कौन जायगा । तलवार से जो निरपराधी के प्राणों को छेदते हैं, वह पिशाच नहीं तो कौन हैं ? जो दूसरों को कष्ट देते हैं, वे सुख संपति से कैसे तृप्त होंगे।
ज्ञानी भाई ? सोचो जो वंचूल बोता है वह आम कैसे खायेगा।
कितना सरस और व्यंग मय उपदेश है।
परमार्थ पद पंक्ति
इसमें कविवर के २५ आध्यात्मिक पद हैं प्रत्येक पद कल्पना पूर्ण सुन्दर और सरस है। एक परदेशी का पद देखिए।
___ कहा परदेशी को पतियारो। मन माने तव चलै पंथ को, साँझ गिनै न सकारो।
सवै कुटुम्ब छांड इतही पुनि, त्याग चलै तन प्यारो॥ दूर दिशावर चलत आपही, कोउ न रोकन हारो।
कोऊ प्रीति करो किन कोटिक, अंत होयगो न्यारो॥ धन सों राचि धरम सों भूलत, झूलत मोह मझारो।
इहिं विधि काल अनंत गमायो, पायो नहिं भव पारो॥ साँचे मुखसों विमुख होत है, भ्रम मदिरा मतवारो।
चेतहु चेत सुनहु रे भइया आपही श्राप संभारो॥