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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
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ईश्वर निर्णय पच्चीसी ___ इनमें २५ छन्दों द्वारा बतलाया है कि ईश्वर कौन है और वह कैसा है अन्त में मतों के पक्षपात का दिग्दर्शन घड़े सुन्दर शब्दों में कराया है। एक मत वाले कहें अन्य मत वारे सब,
मेरे मतवारे पर वारे मत सारे हैं। एक पंच तत्व वारे एक एक तत्व वारे,
एक भ्रम मत वारे एक एक न्यारे हैं। जैसे मतवारे के तैसे मत वारे वक,
तासों मतवारे तक विना मत वारे हैं। शान्ति रस चारे कहें मत को निवारे रहे,
तेई प्रान प्यारे रहें और सव वारे हैं।
एक मत वाले कहते हैं और सब मतवाले हैं मेरे मत वालों पर सब मत न्योछावर हैं पंच तत्व, एक तत्व, भ्रम मत ये सव न्यारे २ मत हैं और जैसे मतवाले (मदोन्मत्त,) वकते हैं उसी तरह ये सव मत वाले भी बकते हैं। शांति रस के चखने वाले मत के पक्ष को रोकते हैं वही ज्ञानी हैं और संसार के प्यारे हैं वाकी तो सव (बारे ) आज्ञानी हैं।
जो यज्ञ में हिंसा आदि के द्वारा ईश्वर को प्रसन्न करना चाहते हैं उसके विषय में कविवर क्या कहते हैं, इसे सुनिए । हिंसा के करैया जोपै जैहैं सुरलोक मध्य,
नर्क मांहि कहो वुध कौन जीव जावेंगे। लैक हाथ शस्त्र जेई छेदत पराये प्रान,
ते नहीं पिशाच कहो और को कहावेंगे।