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कविवर बनारसीदासं
जन्म कथा
ला० खरगसेनजी का विवाह एक उच्च कुलीन कन्या से हुआ था । पति पत्नी में परस्पर बड़ा स्नेह था दोनों सुख पूर्वक अपना गृहस्थ जीवन व्यतीत करते थे ।
उन्हें किसी प्रकार की चिन्ता नहीं थी । हाँ केवल एक बात का अभाव था अभी उनके कोई संतान नहीं हुई थी ।
एक समय ला० खरगसेनजी पुत्र प्राप्ति की इच्छा से रोहतकपुरी की सती की यात्रा करने गए परंतु दुर्भाग्य से मार्ग में उनका सारा धन चोरों ने लूट लिया । वे बड़ी कठिनाई से वारिस लौटकर आए कविवर ने इसको बड़े अच्छे ढंग से वर्णन किया है ।
गए हुते मांगन को पूत, यह फल दीनों सती अऊत, प्रगट रूप देखें सब सोग, तऊ न मानें मूरख लोग ।
तीन वर्ष की महान आकांक्षा के बाद संवत् १६४३ में खरगसेनजी के यहाँ पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ। माता-पिता का हृदय आनंद रस से सारावोर हो गया । पुत्र का नाम विक्रमाजीत रक्खा गया ।.
संवत् सोलह सौ ताल, माघ मास सित पक्ष रसाल एकादशी वार रविनन्द, नखत रोहिणी वृष को चन्द रोहिन त्रितिय चरन अनुसार, खरगसेन घर सुत अवतार दीनों नाम विक्रमाजीत, गावहिं कामिन मंगल गीत ।