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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
पहिरी माला मंत्र की, पोयो कुल श्रीमाल। . थाप्यो गोत विहोलिया, वीहोली रखपाल ॥
कविवर वनारसीदासजी का जन्म इसी प्रसिद्ध श्रीमालवंश. में हुआ था।
आपके पितामह श्री मूलदासजी हुमायूं वादशाह के उमराव के जागीरदार थे। वह नरवर नगर में शाही मोदी थे वहाँ उनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। श्री मूलदासजी के खरगसेन नामक एक पुत्र था। वालक खरगसेन ग्यारह वर्ष का होने पाया था कि दुर्भाग्य से एकमात्र पुत्र और पत्नी को रोता छोड़कर मूलदासजी स्वर्गवास कर गए। वेचारे माता पुत्र दोनों निराधार हो गए-असमय में ही पति के इस वियोग से निराधार अवला का हृदय व्याकुल हो गया। इसी समय मुग़ल सरदार ने मूलदासजी की मृत्यु हो जाने पर उनकी सारी संपत्ति छीन ली । अव तो उस पर दोहरे दुःख का पहाड़ टूट पड़ा। उसका अब कोई सहारा नहीं रहा था उसका धैर्य नष्ट हो गया। अन्त में निराश्रित होकर वह अपने पिता के यहाँ जौनपुर आगई पिताने उसे अावासन देकर आदर सहित अपने यहाँ रक्खा । __.. खरगसेनजी वालकपन से ही विचारशील, चतुर और वचन-कला में कुशल थे। वे १४ वर्ष की अल्प आयु से ही व्यापार की ओर अपना मन लगाने लगे। और अपनी कला कुशलता से आगरा आदि स्थानों में जाकर द्रव्य संग्रह करने लगे। धीरे २ अपने पुरुपार्थ से वे विपुल संपत्ति के अधिकारी हो गए । यही उदार चरित और परम साहसी ला० खरगसेनजी हमारे चरित नायक कविवर वनारसीदासजी के पिता थे।
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