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________________ भैया भगवतीदास १४९ फारसी की कविता का एक पद्य मान यार मेरा कहा दिल की चशम खोल, साहिव नजदीक है जिसको पहचानिये। नाहक फिरहु नांहि गाफिल जहान वीच, शुकन गोश जिनका भली भांति जानिये ॥ पावक ज्यों बसता है अरनी पखान मांहि, तीस रोस चिदानंद इस ही में मानिए,। पंज से गनीम तेरी उन साथ लगे हैं, खिलाफह से जानि तू आप सच्चा पानिये॥ हे मित्र ! मेरा कहना मान दिल की आखें खोल! देख तेरे पास ही तेरा प्रभु है उसको पहचान । बेहोश होकर व्यर्थ ही संसार में मत घूम । श्री जिनेन्द्र के उपदेश को अच्छी तरह से समझ । जिस तरह लकड़ी और पत्थर में अग्नि समाई हुई है उसी तरह तेरे अन्दर ही शुद्ध आनंद मय चैतन्य बसा हुआ है। पाँचों इन्द्रियों के विपय रूपी शत्रु तेरी आयु के साथ लगे हुए हैं इन्हें अपने पास से हटाकर तू अपने अत्मा को ठीक वरह . से पहचान। गुजराती कविता का एक पय उहिल्या जीवड़ा हूँ तनै शं कहूँ, वली वली श्राज तू विषय विष सेवे। विषयन फल अछविषय थकी पाडवा, लाभ नी दृष्टि में कां न वेवे ॥
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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