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भैया भगवतीदास
१४५ mmiwwww.nonwww.mmmmmmmmm rememmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm कहाँ कहाँ कौन संग, लागे ही फिरत लाल,
श्रावो क्यों न श्राज तुम ज्ञान के महल में। नैकहु विलोकि देखो, अंतर सुदृष्टि सेती,
कैसी कैसी नीकी नारि खड़ी है टहल में॥ एकन तै एक बनी सुन्दर सुरूप धनी,
उपमा न जाय गनी वाम की चहल में। ऐसी विधि पाय कहूं भूलि ई न पाय दीजे,
एतो कह्यो मान लीजे वीनती सहल में |
हे लाल! तुम किस किस के साथ कहाँ कहाँ लगे फिरते हो आज तुम ज्ञान के महल में क्यों नहीं आते 1
तुम अपने हृदय तल में जरा ज्ञान दृष्टि को खोलकर तो देखो! दया, क्षमा समता शांति आदि कैसी कैसी सुन्दर रमणिएँ तुम्हारी सेवा में खड़ी हुई हैं।
एक से एक सुन्दर और मनोहर रूप वाली हैं जिनकी तुलना संसार की कोई भी वालाएं नहीं कर सकती।
इस तरह के मनोरम साधन प्राप्त कर तुम भूलकर भी कहीं पाँव मत रखिए यह मेरी साधारण सी प्रार्थना आप सहज में ही स्वीकार कर लीजिए! - अच्छा अब सुमति रानी का सिखापन भी सुन लीजिए। सुनो जो सयाने नाहु देखो नेकु टोटा लाहु,
कौन विचसाहु जाहि ऐले लीजियतु है। दश धौस विपै सुख तरको कहो केतो दुख,
परि के नरक मुख कौलों सीजियतु है॥
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