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भैया भगवतीदास
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कव पसन्द आती आपने उसकी पृष्ठ पर निम्न कवित्त लिखकर उसे वापिस लौटा दी।
बड़ी नीति लघु नीति करत है, वाय सरत वदवोय भरी।
फोड़ा अदि फुनगुनी मंडित, सकल देह मनु रोग दरी॥ शोणित हाड़ मांस मय मूरत, तापर रीझत घरी घरी। ऐसी नारि निरख कर केशव! 'रसिक प्रिया तुम कहा करी?
केशव ! तुमने रसिक प्रिया क्या की ? तुम भ्रम में भूल गए । तुम मोह सागर में कितने नीचे गिर गए हो। कितनी असत् कल्पनाएं करके तुमने अपने आत्मा को ठगा है। अनेक भोले भाले युवकों के हृदयों में कुत्सित भावनाओं को प्रोत्साहित किया है । और झूठी प्रशंसा करके कविता देवी को कलंकित कर डाला है।
___ उनकी कविता में कितनी सत्यता थी। संसार की माया में फंसे हुए अज्ञानी मानवों को नारियों के अङ्गों की अश्लील ढंग से चित्रण करके उसमें फँसाने वाले कवियों के प्रति उनका कैसा उत्तम उपदेश था। कितनी दया थी उनके हृदय में उन शृंगारी कवियों के प्रति ! हाय ! केशव ! रसिक प्रिया तुम कहा करी!
क्या नारियों के अंगों पर दृष्टि गड़ाए रहना ही कवि कर्म हैं क्या उनके कटाक्षों और हावभाव विलासों में मग्न रहना ही कवि धर्म है तुमने जिसकी प्रशंसा करने में अपने अमूल्य मानव जन्म के बहुमूल्य समय को नष्ट कर दिया थोड़ा उसका अंतर्तम तो देखो! नहीं नहीं कवि कमें महान है। उसके ऊपर जनता के उद्धार का कठिन भार है कविता केवल मौज की वस्तु