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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
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की वस्तु प्राप्त कर लेता है उसे मार्ग भ्रम नहीं होता और न वह पथ-भ्रष्ट होता है किन्तु अपना इच्छित सरल और सुखद मार्ग प्राप्त कर लेता है। - कविवर की कविता में उसे शांति का रम्य छाया स्थल प्राप्त होता है वहाँ कुछ समय विरम कर वह शांति का अनुभव करता है और शक्ति प्राप्त कर आगे बढ़ने के लिए समर्थ होता है।
पवित्र हृदय कवि केशवदासजी हिन्दी के प्रसिद्ध शृंगारी कवि हो गए हैं वृद्धावस्था में भी आपकी शृंगार लालसा कम नहीं हुई थी। केश सफेद हो जाने पर भी आपका हृदय विलास कालिमा से काला ही बना था। वृद्धावस्था के कारण आप अपनी वासनाओं की पूर्ति करने में अशक्य हो गए थे, युवती बालाएं सफेद केशों को देखकर आपके निकट नहीं आती थीं इससे आपका हृदय अत्यंत कष्ट पाता था आप इस कष्ट को सहन नहीं कर सकते थे आपने कष्ट का वर्णन निम्न पद्य द्वारा किया है:केशव केशनि असिकरी, जैसी श्ररि न कराय। चन्द्र वदन मृग लोचनी; वावा कहि मुरि जाय ॥
इससे आपकी शृङ्गार प्रियता का पूर्ण परिचय मिलता है। आपने रसिकों का हृदय संतुष्ट करने के लिए रसिक प्रिया नामक एक ग्रंथ बनाया है जिसमें नारी के नख शिख तक सभी अङ्गों की अनेक तरह के अलंकारों और उपमाओं द्वारा जी भरके प्रशंसा की है।
भैया भगवतीदासजी को उसकी एक प्रति प्राप्त हुई थीभैयाजी तो आदर्श वादी कवि थे उन्हें झूठी तथा कुत्सित प्रशंसा