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________________ भैया भगवतीदास १३३ परिचय नहीं दिया है। आपकी कविताओं में विक्रम संवत १७३१ के १७५५ तक का उल्लेख मिलता है। इससे ज्ञात होता है कि आपका जन्म सत्रहवीं शताब्दी के प्रारंभ ही में हुया होगा। इसके प्रथम की अथवा आगे की आपकी कोई भी कविता अभी तक नहीं मिली है। आपके पिता लालजी साहु आगरे के प्रसिद्ध व्यापारी थे आप अोसवाल वैश्य थे कटारिया आपका गोत्र था। जैवधर्म के शृद्धानी होने पर भी आपके विचार उदार थे आपका हृदय विशाल था पक्षपात की बू आप में तनिक भी नहीं थी। भैया भगवतीदासजी अपने पिता के आज्ञाकारी सुपुत्र थे। व्यापार में कुशल होने पर भी आपकी विशेष रुचि काव्य की ओर प्रवाहित हुई। आपने हिन्दी और संस्कृत भापा का अच्छा अभ्यास करने के पश्चात् साहित्यक ग्रंथों का भी भले प्रकार अध्ययन किया था। संस्कृत और हिन्दी के ज्ञाता होने के अतिरिक्त आप फारसी, गुजराती, मारवाड़ी, बँगला आदि भापाओं पर भी अच्छा अधिकार रखते थे कुछ कविताएं तो आपने केवल गुजराती तथा फारसी में ही की है। आपका स्वभाव वड़ा सरल था और सादगी तो आपकी जीवन सहचरी ही थी। कविता से आपको हार्दिक स्नेह था आप जो कुछ भी रचना करते थे उसमें अपने को पूर्ण वल्लीन कर लेते थे सुरुचि का आप पूरा ध्यान रखते थे। आपकी कविता का प्रत्येक पद्य हृदयग्राही और वोध प्रद है उसका पढ़ने वाला उसमें से कुछ न कुछ अपने कल्याण
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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