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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
इस भक्ति मार्ग के अन्दर परनारी सेवन और मदिरा पान की भावनाओं को प्रचंड किया गया और भारतीय प्रजा में नपुसंकता के बीज बोये गए ।
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ऐसे समय में कुछ कविगण ही अपने काव्य के आदर्श को सुरक्षित रख सके हैं ।
जैन कवि तो कुत्सित शृंगार वर्णन से बिलकुल अछूते ही रहे हैं। यह सब जैन धर्म की सुशिक्षा का ही परिणाम है कि जैन कवियों ने अपनी कविता को किसी प्रकार भी कलंकित नहीं होने दिया।
उन्होंने नीति, चरित्र और संयम को सरस फुलवाड़ी लगाई। वे अध्यात्म कुंज में समाधि के रस में मन्न रहे और आत्म तत्व में उन्होंने अपनी लौ लगाई ।
उन्होंने अपनी कविता में अमरता का संगीत अलापा और वे जनता के पथ निदर्शक बने ।
उनका काव्य संसार का गुरु बना धन्य है उनका कवित्व और धन्य है उनकी अभिलाषा ।
जीवन रेखाएं
आगरा मुगल साम्राज्य का ऐतिहासिक स्थान रहा है अधिकांश जैन कवियों को जन्म देने का सुयश भी आगरे को ही प्राप्त हुआ है । कविवर भूधरदास, आदि कवियों ने भी इसी स्थान पर जन्म लेकर काव्य की सरस धारा सरसाई है ।
कविवर भगवतीदासजी का जन्म भी इसी श्रागरे में हुआ था। आपकी जन्म तिथि क्या थी इसका निश्चित पता अभी तक नहीं लगा है आपने अपनी रचनाओं को प्रशस्ति में