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________________ प्राचीन हिन्दी जैन कवि इस भक्ति मार्ग के अन्दर परनारी सेवन और मदिरा पान की भावनाओं को प्रचंड किया गया और भारतीय प्रजा में नपुसंकता के बीज बोये गए । ९३२ anada ऐसे समय में कुछ कविगण ही अपने काव्य के आदर्श को सुरक्षित रख सके हैं । जैन कवि तो कुत्सित शृंगार वर्णन से बिलकुल अछूते ही रहे हैं। यह सब जैन धर्म की सुशिक्षा का ही परिणाम है कि जैन कवियों ने अपनी कविता को किसी प्रकार भी कलंकित नहीं होने दिया। उन्होंने नीति, चरित्र और संयम को सरस फुलवाड़ी लगाई। वे अध्यात्म कुंज में समाधि के रस में मन्न रहे और आत्म तत्व में उन्होंने अपनी लौ लगाई । उन्होंने अपनी कविता में अमरता का संगीत अलापा और वे जनता के पथ निदर्शक बने । उनका काव्य संसार का गुरु बना धन्य है उनका कवित्व और धन्य है उनकी अभिलाषा । जीवन रेखाएं आगरा मुगल साम्राज्य का ऐतिहासिक स्थान रहा है अधिकांश जैन कवियों को जन्म देने का सुयश भी आगरे को ही प्राप्त हुआ है । कविवर भूधरदास, आदि कवियों ने भी इसी स्थान पर जन्म लेकर काव्य की सरस धारा सरसाई है । कविवर भगवतीदासजी का जन्म भी इसी श्रागरे में हुआ था। आपकी जन्म तिथि क्या थी इसका निश्चित पता अभी तक नहीं लगा है आपने अपनी रचनाओं को प्रशस्ति में
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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