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________________ १३६' प्राचीन हिन्दी जैन कवि ANAMRAPAavhanum नहीं है। उसपर देश और समाज के उत्थान का कठिन उत्तरदायित्व है। यह था कविवर भगवतीदासजी की कविता का आदर्श और उनकी अपूर्व पवित्रता का एक उदाहरण । उनका लक्ष्य नारी निंदा की ओर नहीं था किन्तु आदर्श पथ से भ्रष्ट हुए कवि को. उपदेश देना ही उनका उद्देश्य था। नारी को वह पवित्रता और महानता का प्रतिनिध समझते थे। उसे वह केवल विलास की वस्तु नहीं मानते थे किन्तु जव कोई उस पवित्र वस्तु को विलास की ही सामग्री बनाकर उसके गौरवमय पवित्र शरीर की केवल वासना भोग और विलास के साथ ही तुलना करता है तव उनका पवित्र हृदय चोट खाता है तव वे उसकी भर्त्सना करते हुए उसका नग्न चित्र साम्हने रख देते हैं। इसी प्रकार वावा सुन्दरदासजी ने जो कि वेदान्त विपय के अच्छे कवि थे रसिक प्रिया की वहुत निंदा की है। कवित्व शक्ति भैया भगवतीदासजी उन श्रेष्ठ कवियों में से हैं जिन्होंने अपने काव्य की धारा वैराग्य, वेदान्त नीति और भक्ति क्षेत्र में वहाई है। आपके काव्य में संसार की मृग तृष्णा में पड़े हुए पथिकों के लिए आत्म ज्ञान और शाति का सुन्दर भरना प्राप्त होता है विपय वासना के दल दल में फंसे हुए युवकों के लिए कर्तव्य मार्ग और नीतिज्ञान की सुन्दर शिक्षा मिलती है।
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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