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कविवर बनारसीदास
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दुरमति दादी विकथा दादो, मुख देखत ही सूत्रो।
मंगलाचार वधाए बाजे, जब यो वालक हो । नाम धर्यो चालक को सूधो, रूप वरन कछु नाहीं। नाम धरते पांडे खाए, कहत बनारसि भाई ॥
नाममाला यह छोटासा एक कोप ग्रन्थ है। महाकवि धनंजय ने संस्कृत में नाममाला कोप की रचना की है यह उसी का सुन्दर अनुवाद है। अनुवाद सुन्दर है वालकों तथा अन्य साधारण साहित्य प्रेमियों के कंठ करने योग्य है। आगे इसके कुछ उदाहरण दिये जाते हैं ।
आकाश के नाम खं विहाय अंवर गगन, अंतरीक्ष जगधाम । व्योम वियत नभ मेघपथ, ये प्रकाश के नाम ॥
काल के नाम यम कृतांत अंतक त्रिदश, श्रावर्ती मृतथान । प्राण हरण, श्रादित तनय, काल नाम परवान ॥
बुद्धि के नाम पुस्तक धिपना सेमुपी, धी मेधा मति बुद्धि । सुरति मनीपा चेतना, आशय अंश विशुद्धि ।।
विद्वान् के नाम निपुण विलक्षण, विवुध बुध, विद्याधर विद्वान् । पटुप्रवीण पंडित चतुर, सुधीसुजन.मतिमान ॥