SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविवर बनारसीदास १२३ पढ़ ग्रंथहि जो ज्ञान वखाने, पवन साध परमारथ मानें। परमतत्व केहोहिंनमरमी, कह गोरख सो महा अधर्मी॥ सुमति देवी के एक सौ आठ नाम इसमें सुमति के एक सौ आठ नामों का वर्णन ९ छंदों में किया है कविता अलंकार पूर्ण है। सिद्धा, संजमवती, स्यावादिनी, विनीता। निर्दोषा, नीरजा, निर्मला, जगत अतीता ॥ सुमति, सुवुद्धि, सुधी, सुबोधनिधि, सुता, पुनीता। शिवदायिनी, शीतला, राधिका, मणि अजीता ॥ कल्याणी, कमला, कुशलि, भव भंजनी भवानि । लीलावती, मनोरमा, श्रांनदी, सुखखानि ॥ षट दर्शन इसमें ८ छन्द हैं इसमें सभी दर्शनों का सुन्दर संक्षिप्त वर्णन है। • वेदान्त देव ब्रह्म, अद्वैत जग, गुरु वैरागी भेष । वेद ग्रंथ, निश्चय धरम, मत वेदान्त विशेप ॥ जैन देवतीर्थकर, गुरु यती, आगम केवलि वैन । धर्म अनंत भयात्मक, जो जानै को जैन ॥ नवसेना विधान इसमें १२ छन्द हैं। सेना, सेनामुख, अनीकनी; अक्षोहिणी आदि सेना भेदों का वर्णन है।
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy