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________________ १२२ प्राचीन हिन्दी जैन कवि सोलह तिथिइसमें १६ छन्दों में कविवर ने सोलह तिथियों की बड़ी सुन्दर कल्पना की है अनुप्रासों का सरस प्रयोग किया है। परिवा प्रथम कला घट जागी, परम प्रतीति रीतिरस पागी, प्रति पद परम प्रीति उपजावै, वहै प्रतिपदा नाम कहावै । पूरन पूरण ब्रह्म विलासी, पूरण गुण पूरण परगासी, पूरण प्रभुता पूरण मासी, कहै वनारसि गुण गण रासी ॥ फुटकर दोहे इन ४१ दोहों में नीति तत्वज्ञान और उपदेश भरा हुआ है प्रत्येक दोहा सरस और सरल है। एक रूप हिन्दू तुरुक, दूजी दशा न कोय । मन की द्विविधा मानकर, भये एक सों दोय ॥ इस माया के कारण, जेर कटावहि सीस । ते सूरख क्यों कर सके, हरि भक्तन की रीस ॥ जो मंहत है ज्ञान विन, फिरें फुलाए गाल । आप मत्त औरन करें, सो कलि मांहि कलाल ॥ जो अाशा के दास ते, पुरुष जगत के दास । श्राशा दासी जासकी, जगत दास है तास ॥ गोरखनाथ के वचन इसमें ७ छन्द हैं प्रत्येक छन्द अनूठे ज्ञान रहस्य से भरा हुआ है, भाव बहुत ही सरल है। जो घर त्याग कहावै जोगी, घरवासी को कहै सुभोगी। अन्तर भाव न परखै कोई, गोरख वोले मूरख सोई॥
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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