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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
उसकी मृत वानी सदैव ही खिरती है और उसके चरणों में मृग का चिन्ह है।
हे सखी मेरा बड़ा सौभाग्य है वह मेरे स्वामी शांतिनाथ जिनेन्द्र मुझे आज मिल गए।
हे सखी! तू बड़ो चतुर, स्वर का ज्ञान-रखने वाली, राजा की प्रिय पत्नी महारानी है।
हे सखी! तू अत्यंत सुकुमारी पति के हृदय को हरनेवाली प्राणप्रिया है।
तेरे मनोहर रूप को देखकर आश्चर्य से चकित होकर, रति और रंभा अपने हृदय में लजित हो रही हैं। सुवर्ण, मृग, कमल, हाथी और सिंह तेरे अंगों की सुन्दरता की समता नहीं कर सकते।
हे नवेली, पति का अनुराग, सुहाग, सौभाग्य और गुणों का भंडार यह सब बड़े पुण्य से मिलता है। जो तुझे प्राप्त हुआ है। उत्तम मानवों का प्रभु, तेरा पति आज तुझे प्राप्त हो गया। हे चतुर सखी तू धन्य है।
स्तुति करत अमर नर मधुप जसु, वचन सुधारस पान ।
वन्दहु शान्ति जिनेश वर, वदन निशेश समान ॥ गजपुर अवतार शान्ति कुमारं शिव दातारं सुख कारं।
निरुपम आकारं, रुचिराचार, जगदाधारं जित मारं ॥ वर रूप अमानं अरितम भानं, निरुपम ज्ञानं, गत मानं ।
गुण निकर स्थानं, मुक्ति वितानं, लोक निदानं, सध्यानं ॥ हीर हिमालय हंस, कुन्द शरदभ्र निशाकर ।
कीर्ति कान्ति विस्तार, सार गुण गण .रत्नाकर।।