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कविवर बनारसीदास
दीपक संजोय दीनो चनु हीन ताके कर,
विकट पहार वा पै कवहूं न चढ़िा , . वानारसी दास सो तो ज्ञान के प्रकाश भये,
लिख्यो कहा पढ़े कछू लख्यो है सो पढ़िए ।
जगह-जगह लाखों और करोड़ों लोग लिखते पढ़ते हैं इस तरह का पाठ पढ़ने से कुछ ज्ञान नहीं बढ़ने का । असत् पक्ष वाले बड़े परिश्रम से शास्त्रों को पढ़ते हैं परन्तु उससे न तो आत्म विकास होता है न संसार समुद्र से तरना होता है। अंधे के हाथ में दीपक देने से क्या वह ऊँचे पहाड़ पर चढ़ सकता है।
ज्ञान का प्रकाश होने पर हे भाई ! लिखा हुआ क्या पढ़ता है यदि कुछ अनुभव किया हो तो पढ़।
कितनी मनोहर युक्ति है।
पहेली यह एक आध्यात्मिक पहेली है इसमें कुल १२ छन्द हैं इसका अर्थ बड़ा गम्भीर, भापा मनोरम और कल्पना अनूठी है इसे आप पढ़िए और कवि की मनोहर कल्पना का आनन्द लीजिए। कुमति सुमति दोऊ ब्रज वनिता, दोऊ को कन्त अवाची।
'यह अजान पति मरम न जाने, वह भरता सों राची ॥२॥ वह सुबुद्धि प्रापा परिपूरन, श्रापा पर पहिचाने ।
लख लालन की चाल चपलता, सौत साल उर श्रानै ॥२॥ करै विलास हास कौतूहल, अगणित संग सहेली।
काहू समय पाय सखियन सौं, कहै पुनीत पंहेली ॥३॥