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कविवर वनारसीदास
धारणा, समता, क्षमा और करुणा ये चारों सखिएं चारों ओर खड़ी हैं, सकाम, अकाम, निर्जरा रूपी दासिएं सेवा कर रही हैं ।
जहाँ पर सातों नय रूपी सुहागिनी महिलाओं को मधुर ध्वनि भंकार हो रही है । गुरु वचन का सुन्दर राग अलापा जा रहा है तथा सिद्धान्त रूपी धुरपद और अर्थ विचार रूपी लाल का संचार हो रहा है । सत्य शृद्धान रूपी मेघमाला बड़े जोर से गरजती है उपदेश की वर्षा होती है और भव्य चातक शोर मचाते हैं। आत्म अनुभव रूपी बिजली जोर से चमकती है और शील रूपी शीतल वायु बहती है । तपस्या के जोर से कर्मों का जाल भंग होता है और आत्म शक्ति प्रगट होती है।
इस तरह हर्प सहित शुद्ध भाव के हिंडोले पर आत्म भावना का सुन्दर वस्त्र धारण किए हुए स्वाभाविक रूप से झूलता हुआ चेतन आत्म ज्ञान का विकास रहता है । उस शुद्ध चैतन्य को बनारसीदास विधि सहित भक्ति पूर्वक हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं ।
मोक्ष पैड़ी
इसमें पंजाबी भाषा में बड़ा सुन्दर उपदेश दिया है। सरस है ।
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मुक्ति की सीढ़ी प्राप्त करने का प्रत्येक उपमा मनोहर और
ऐ जिन वचन सुहावने, सुन चतुर छ्यल्ला । इस बुके बुध लहलहै, नहिं रहै मयल्ला जिसदी गिरदा पेंच सों, हिरदा
जिसना संसो तिमिर सों, सूझे
१ ॥
झलमल्ला ॥ २ ॥
कलमल्ला ।