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________________ ९६ प्राचीन हिन्दी जैन कवि wrnima नवरत्ल कवित्त इसमें ९ छन्दों में नीति शास्त्र का रहस्य बड़ी सुन्दरता से भर दिया है वर्णन सजीव और सरस है। विमल चित्त करि मित्त, शस्त्र छल वल वश किजय । प्रभु सेवा वश करिय, लोभवन्तह धन दिजय ।। युवति प्रेम वश करिय, साधु आदर वश श्रानिय । महाराज गुण कथन, बन्धु सम-रस सनमानिय ।। गुरु नमन शीष रससों रसिक, विद्या वल बुधि मन हरिय । मूरख विनोद विकथा वचन, शुभ स्वभाव जग वश करिय॥ शुद्ध मन से मित्र, छल से शत्रु, सेवा से स्वामी, धन से लोभी, प्रेम से पत्नी, आदर से साधु, गुण कथन से राजा, अपने पन से कुटुम्बी, विनय से गुरु, रसिकता से रसिक, विद्या से बुद्धिमान, वातों से मूर्ख, और सरल स्वभाव से संसार को वश में करना चाहिए। इस छन्द में माली का उदाहरण देकर राज्य नीति का बड़ा सुन्दर दिग्दर्शन कराया है। शिथिल मूल दिढ़ करै, फूल चूट जल सींचे। ऊरध डार नवाय, भूमि गत ऊरध खींचै॥ जो मलीन मुरझाहिं, टेक दे तिनहिं सुधारइ । कूड़ा कंटक गलित पत्र, बाहिर चुन डारइ ॥ लघु वृद्धि करइ भेदे जुगल, वाडि सँवारै फल चखै । माजी समान जो नृप चतुर, सो विललै संपति अखे॥ जिस तरह माली हिलती हुई जड़ को मजबूत करता है। फूल चुनता है और जल सींचता है। ऊँची डाल को नीचे
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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