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कविवर बनारसीदास ९५ rxmmmmmmmmmm. ..... उसी तरह समाई हुई हूँ जिस तरह जल और उसकी तरंग में कोई भेद नहीं रहता।
__मेरा पति कर्ता है और मैं क्रिया हूँ। पति ज्ञानी है और मैं ज्ञान विभूति हूँ।
. पति सुख का समुद्र है और मैं सुख सागर की सीमा हूँ। पति शिव मंदिर है और मैं उसकी नीव हूँ।
पति ब्रह्मा है और मेरा नाम सरस्वती है, पति पति विष्णु है और मैं लक्ष्मी हूँ। - . पति शंकर है और मैं भवानी देवी हूँ। पति जिनेन्द्र देव है और मैं जिनवाणी हूँ।
पति भोगी है और मैं भुक्ति हूँ। पति योगी है और मैं उसका भेप हूँ।
पति जहाँ पर साधक है वहाँ मैं सिद्धि हूँ। जहाँ पति स्वामी है वहाँ मैं रिद्धि रूप में विराजमान हूँ जहाँ पति राजा है वहाँ मैं नीति हूँ और जहाँ पति योद्धा है वहाँ मैं जीत हूँ।
पति गुण ग्राहक है और मैं गुण का समूह हूँ पति बहुतों का नायक है और मैं बहुत प्रकार हूँ।
जहाँ मेरा पति है वहाँ मैं उसी तरह उसके संग हूं जिस तरह सूर्य और चन्द्रमा में ज्योति समाई हुई है।
बनारसीदास जी कहते हैं कि केवल कहने सुनने के लिए ही चेतन और सुमति के दो नाम हैं परन्तु वास्तव में वह दोनों एक ही हैं।