________________
कविवर वनारसीदास
भाव के कड़े हाथों में विराजते हैं । सत्य पान से मुख सुशोभित हो रहा है । इस तरह पत्थर के गहनों के बिना ही सन्त पुरुपों का शरीर गुण के आभूपणों से सुशोभित होता है।
अध्यात्म गीत (राग गौरी)
इसमें कविवर ने आत्मा को नायक बनाया है सुमति उसकी पत्नी है सुमति आत्मा के प्रेम में कितनी तन्मय है। और वह उसे कितनी सुन्दर उपमाओं से संबोधित करती है इसका घड़ा ही आकर्षक वर्णन किया है।
इसमें कुल ३१ छन्द हैं । प्रत्येक छन्द अत्यंत सुन्दर और हृदयग्राही है । उपमाएं मौलिक, निर्दोप और अनूठी हैं। मेरा मन का प्यारा जो मिले, मेग सहज सनेही जो मिले। अवधि अजोध्या प्रातम राम, सीता सुमति कर परणाम || उपज्यो कंत मिलन को चाय, समता सखीसौंकहै इस भाव । मैं चिरहिन पिय के प्राधीन, यों तड़फों ज्यों जल विन मीन ॥ पाहिर देखू तो पिय दूर, घट देखे घट में भरपूर ।
होहुँ मगन मैं दरसन पाय, ज्यों दरिया में बून्द समाय । पिय को मिलों अपनपो खोय, श्रोला गल पाणी ज्यों होय ।
पिय मोरे घट, मैं पिय माहि, जल तरंग ज्यों द्विविधा नाहि । पिय मो करता मैं करतूति, पिय ज्ञानी में ज्ञान विभूति ।। पिय सुख सागर मैसुख सीव, पिय शिव मंदिर में शिव नीच । पिय ब्रह्मा मैं सरस्वति नाम, पिय माधव मो कमला नाम ।