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________________ प्राचीन हिन्दी जैन कवि Ha........APANNARAAMAI Humavad जाको मिले हित सों अचेत कर डारै ताहि विप की वहिन तातें विप कैसो हियो है। ऐसी ठगहारी जिन धरम के पंथ डारी । करकै सुकृति तिन याको फल लियो है ।। ___ अर्थ-लक्ष्मी नीच की ओर ही प्रेम से उमंग कर चलती है इसमें उसका कोई अपराध नहीं, इसके पिता समुद्र ने ही इसको यह स्वभाव दिया है। इसके पैर कहीं भी स्थिर नहीं रहते कमल में रहने वाली होने से कमल जैसे पैर मिले हैं। जिससे मिलती है उसे वेहोश कर डालती है, विप की बहिन होने के कारण विप जैसा ही इसका हृदय है। ऐसी ठगिनी लक्ष्मी को जिन्होंने धर्म के मार्ग में डाल दी है, उन्होंने ही इसके पाने का फल लिया है। कवित्त सज्जन पुरुषों का आभूषण क्या है ? वंदन विनय मुकुट सिर ऊपर, सुगुरु वचन कुंडल जुग कान । अंतर शत्रु विजय भुज मण्डल, सुकतमाल उर गुन अमलान । त्याग सहज कर कटक विराजत, शोभित सत्य वचन मुख पान । भूपण तजहिं तऊ तन मंडित, यात संत . पुरुष परधान । अर्थ-विनय का मुकुट सिर पर है, गुरु के वचन कुंडल कानों में हैं। काम क्रोध शत्रु पर विजय का बाजूबंद बाजुओं का भूपण है। उत्तम गुण मोतियों की माला हृदय पर है। त्याग
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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