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जैन कथानो मे नारी
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प्रवल शक्ति री, जग की धात्री नारी
नव निर्माण करो तुम । आशाओ की चिर अभिनेत्री,
प्रतिपल जग का मान करो तुम । तेरे स्वर के ही सयम ने, सर्जनकर ससार बसाया, जगती के कल्पित सपनो मे, वह पावन सा प्यार जगाया । तेरे अभिनव इन अधरो ने, उल्लासित शृ गार किया था, प्रलय-पुरुष मनु को श्रद्धा बन, मीठा सा उपहार दिया था । महिमा मयी महामाया हो, चपला सी प्रतिमा चचल, तेरे चरणो की छाया में गिरता-उठता जग प्रतिपल । अधरो मे तुम विश्व छिपाए, जीवन मे बढती जाती हो, आँधी आए बिजली कडके, तूफानो को सहती जाती हो। युग देवी, तेरी सत्ता का आदि नहीं है, अन्त नहीं है, तुझ मे जो कुछ मिल जाता है, उसका भी तो अन्त नही है।
कविवर प्रसाद ने नारी को श्रद्धा-रूप मे सम्मानित कर अपने महाकाव्य कामायिनी की सृष्टि को सफल माना है। इसी प्रकार कवि पन्त ने 'पल्लव' मे कल्याणी, सुकुमार, स्नेहमयी आदि सम्बोधनो से नारी को सम्मानित किया है
स्नेहमयि । सुन्दरतामयि ! तुम्हारे रोम-रोम से नारि ! मुझे है स्नेह अपार, तुम्हारा मृदु उर ही सुकुमारि। मुझे है स्वर्गागार । तुम्हारे गुण है मेरे गान, मृदुल-दुर्बलता, ध्यान, तुम्हारी पावनता अभिमान, शक्ति, पूजन, सम्मान, अकेली सुन्दरता कल्याणि, सकल ऐश्वर्यो की सधान ! तुम्हारे छूने मे था प्राण, सग मे पावन, गगा-स्नान । तुम्हारी वाणी मे कल्याणि ।