________________
हो जाता है तथा भय हिंसा का ही एक भेद है । वह परघात न करते हुये भी स्वघात करता है। अतः महावीर ने अहिसा की वारीकी की न केवल स्वय समझा और आचरित किया, अपितु उसे उस रूप में ही आचरण करने का उन्होंने उपदेश दिया।
- यदि आज का मनुण्य मनुष्य से प्रेम करना चाहता है और मानवता की रक्षा चाहता है तो उसे महावीर की इस सूक्ष्म क्षमा और अहिंसा को अपनाना ही पडेगा। वह सम्भव नही कि बाहर से हम मनुष्य प्रेम की दुहाई दें ओर भीतर से कटार चलाते रहे । मनुष्य प्रेम के लिये अन्तस और वाहर दोनो में एक होना चाहिये। कदाचित हम वाहर प्रेम का प्रदर्शन न करें तो न करें, किन्तु अन्तस में तो वह अवश्य हो। तभी विश्वमानवता जी सकती है और उसके जीनेपर अन्य प्राणीयो पर भी करुणा के भाव विकसित हो सकते हैं।
क्षमा और अहिंसा ऐसे उच्च सद्भावपूर्ण आचरण है जिनके होते ही समाज में, देश में, विश्व में और जन-जन मे प्रेम और करुणा के अंकुर उगकर फूल-फूल सकते हैं तथा सभी सुखी बन सकते हैं।
Gram: "GREENPEAS"
Office 35-9917
• Resi & Guddy : 34-0160 ॥ अहिंसा परमो धर्म ॥ SURAJMALL CHANDMALL
VEGETABLE MERCHANTS & COMMISSION AGENTS
Š TRADE MARKS
Office 137, Bipin Behari Ganguli St
Calcutta-12
Resi Guddy 147, Mahatma Gandhi Road,
Calcutta-7
संयमही जीवन है-आचार्य तुलसी
जय जवान
जय किसान