SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन कथानो का सांस्कृतिक अध्ययन ' 'यहाँ न्याय-व्यवस्था से सम्बद्ध कृछ कथाओ के विशिष्ट अशो का --उल्लेख उदाहरणो के रूप में किया जाता है जो उक्त कथन की परिपुष्टि मे पर्याप्त है। धर्माधिकारियो ने आपस में सलाह कर कहा-'महाराज, श्रीभूति पुरोहित का अपराध बडा भारी है । इसके लिए हम तीन प्रकार की सजाये नियत करते है। उनमे से फिर जिसे यह पसन्द करे, स्वीकार करे । या तो इसका सर्वस्व हरण कर लिया जाकर इसे देश बाहर कर दिया जाय, या पहलवानो की बत्तीस मुक्कियाँ इस पर पड़े या तीन थाली मे भरे हुए गोबर को यह खा जाय । श्रीभूति से सजा पसन्द करने को कहा गया। पहले उसने गोबर खाना चाहा पर खाया नही गया। तब मुक्कियाँ खाने को कहा । मुक्कियाँ पडना शुरु हुई । कोई दस-पन्द्रह मुक्कियाँ पडी होगी कि पुरोहित जी की अकल ठिकाने आ गई । आप एकदम चक्कर खाकर जमीन पर ऐसे गिरे कि पीछे उठे ही नहीं । वे दुर्गति मे गए । धन मे अत्यन्त लम्पटता का उन्हे उपयुक्त प्रायश्चित मिला।' श्री भूति पुरोहित की कथा-आराधना कथाकोश दूसरा भाग पृष्ठ ३४ । (श्री भूति पुरोहित को उक्त दण्ड समुद्रदत्त के बहुमूल्य पाँच रत्न हडप करने के अपराध मे दिया गया था ।) (२) ___ 'इसी देश के हस्तिनापुर मे एक धनदत्त नाम का वैश्य रहता था । उसकी धनमती स्त्री से उग्रसेन नाम का पुत्र था । वह एक दिन चोरी करते पकडा गया। कोतवाल ने उसकी लात घूसे और मुक्को से खबर ली । विकट पिटाई के कारण उग्रसेन मर गया और वह व्याघ्र हुआ ।' (राजा वज्रजघ की कथा, पुण्याश्रव कथाकोश पृष्ठ ३१६) "किसी ने कहा -श्री गुणसागर मुनि एक महीने का उपवास कर पारणा के लिए नगर मे गये थे। गगदत्त सेठ की स्त्री सिंधुमती ने उन्हे घोडे के लिए रखी हुई कडवी तु वो का आहार दे दिया, जिससे उनका शरीर छूट गया । राजा के साथ गगदत्त सेठ भी था, उसे यह सुनकर बडा खेद और वैराग्य हुया । अत तत्काल ही उसने भोगो से उदास होकर जिनदीक्षा ले ली और राजा ने क्रोधित होकर सिंधुमती को उसकी नाक, कान, कटवाकर और गधे पर चढ़ाकर अपने शहर से निकलवा दिया। सिंधुमती को कुछ समय
SR No.010268
Book TitleJain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy