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जैन कथाओ का सास्कृतिक अध्ययन
विद् एव भक्त भली भांति जानते है। यहाँ सौन्दर्य विषयक कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये जाने है। भगवान ऋषमदेव के सौन्दर्य का वर्णन
_ 'भगवान के छत्राकार मस्तक पर काले-काले घू घरवाले केश रूपाचल की शिखर पर जडी हुई नीलमणियो की शोभा धारण करते थे। उनके ललाट नाक, कमल के नाल दण्डो के समान लबायमान कान चढे हुए धनुष के समान दोनो भोये इतने कमनीय थे कि उनका वर्णन करना भी कठिन है। उनके दोनो नेत्र और श्रोत्र कमल दल के समान सुन्दर थे। दॉत अतिशय निर्मल मोती सरीखे थे अत्यन्त चमकीले सम और छोटे-छोटे थे एव सफेद कुन्द पुष्प की शोभा धारण करते थे।' (हरिवश पुराण पृष्ठ १२६) महारानी मरुदेवी की सुन्दरता का चित्रण
रानी मरुदेवी साक्षात समुद्र की लहर जान पडती थी, क्योकि समुद्र की लहर मे जिस प्रकार शख, मूगे, और मुक्ता फल होते हैं उसी प्रकार यहाँ पर भी शख के समान गोल ग्रीवा थी, अधर पल्लव मनोहर मूगे ओर दाँत दैदीप्यमान मुक्ताफल थे। उनके वचन कोकिला के शब्द के समान मिष्ट जान पडते थे। उनके दोनो नेत्र श्वेत-श्याम और रक्त तीन वर्ण वाले कमल के समान सुन्दर थे
(हरिवश पुराण पृष्ठ १११-११२) साध्वी का सौन्दर्य चित्रण
पुष्पो के समान कोमल भुजारूपी लताओ से मडित वह कन्या जो भूषण और माला आदि पहने थी, उसने सब उतार दिये और अपने हाथ की उ गलियो से मनोहर केशो को उखाडती हुई ऐसी जान पडने लगी मानो हृदय से भयकर शल्य समूह को उखाड रही है । उसके जघन वक्ष स्थल, स्तन, उदर और शरीर एक श्वेत वस्त्र से ढके थे इसलिए उस समय वह श्वेत बालु से युक्त निर्मल जल से भरी हुइ शरद ऋतु की नदी सरीखी जान पडती थी ।
(हरिवश पुराण पृष्ठ ४६०) एक कामिनी को सुन्दरता का अकन
स्त्रियो के मध्य मे एक अतिशय मनोहर साक्षात् रति के समान स्त्री बैठी थी। अचानक ही उस पर राजा की दृष्टि पड गई । उसका मुख चन्द्रमा