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जैन कथाओ मे सौन्दर्य-बोध
कलाकारो ने सोन्दर्य चित्रण मे कामिनी से अकित किया है। उर्दू के शायरो की नही जा सकती है
दरियाए-हुस्न और भी दो हाथ बढ गया ।
गाई उसने नशे मे ली जब उठा के हाथ । नासिर
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के हाव-भावो को अधिक मनोयोग शायरी तो इस सदर्भ मे भुलाई
अँगड़ाई भी वह लेने न पाये थे उठा के हाथ |
देखा जो मुझको छोड़ दिए मुस्करा के हाथ । निजाम रामपुरी,
मुहब्बत हर किसी के दिल मे
करलेती हैं घर होकर,
नजर
कभी - तिछ
नजर
कभी-सीधी
अपना ।
होकर |
(अज्ञात)
जैन कथाओ मे सौन्दर्य का चित्रण उनके रूपो मे हुग्रा है । बाह्य सोन्दर्य को आकर्षक रीति से चित्रित करते हुए इन जैन कथाकारो ने भाव सौन्दर्य का भी वडी तत्परता से अभिव्यजित किया है । वाह्य सौन्दर्य एव अन्त: सौन्दर्य एक दूसरे के पूरक है । रूप सौन्दर्य ( बाह्य सौन्दर्य ) को कित करते हुए इन जैन कथाकारो ने उपमा, उदाहरण, रूपक, दृष्टान्त, उत्प्र ेक्षा आदि अलकारो को पर्याप्त मात्रा मे उपयोग किया है । इस रूप - चित्ररण मे सुन्दरता का पार्थिव रूप विशेषत: प्रस्फुटित हुआ है । इस सम्बन्ध मे बहुमूल्य वेशभूषा की भी कहानीकारो ने चर्चा की है । यहाँ अग-प्रत्यगो के लालित्य की तीव्रतम अभिव्यक्ति हुई है । भाषा की मृदुलता के साथ-साथ उपमाओं की मनोरमता एव कल्पनाओ की अभिनव और रम्य उडान दृष्टव्य है ।
श्रायु के परिवर्तन से सुन्दरता मे जो नूतन उन्मेष परिलक्षित होता है, उसे भी इन कथाकारो ने बडी सजगता और तल्लीनता से चित्रित किया है । इस सौन्दर्याभिव्यक्ति मे परमपूज्य तीर्थंकर, तीर्थकरो की महाभाग्य शालिनी जननी, साध्वी, नृपति, महिषी, कामिनी, नवोढा, प्रकुरित यौवना, प्रेमी प्रेमिका आदि सबको समुचित गौरव प्राप्त हुआ है । चेतन सौन्दर्य के साथ इन कथाओ मे अचेतन सुन्दरता की भी यथावसर अभिव्यजना हुई है । यह चेतना-विहीन सौन्दर्य बडा ग्राकर्षक होता है । स्थापत्य कला की खूबसूरती से देवता भी तो आकृष्ट होते है | विशाल जिनालयो के दर्शनार्थ स्वर्गलोक के निवासी सुरादि सदैव लालायित रहा करते हैं । प्रणम्य जिन प्रतिमायो का भाव-सौन्दर्य एव बाह्य सौन्दर्य कितना प्रभावोत्पादक होता है, इसे कला