________________
जैन कथानो मे सौन्दर्य-बोध
१४७ के समान था । नेत्र कमल के समान थे। दोनो पोष्ठ बिंबाफल सरीखे और कठ शख तुल्य था । उसके स्तन चक्रवाको की उपमा को धारण करते थे। कटिभाग अतिशय कृश था, नाभि अत्यन्त गहरी थी। दोनो जघाएं सुघटित थी। नितम्ब कुदरू फल से तुलना करते थे। उसके दोनो चरण विशाल उरु सुन्दर जघा एव पाणियो से अतिशय शोभायमान थे।
(हरिवश पुराण पृष्ठ १७२) एक वेश्या के चचल सौन्दर्य को अभिव्यक्ति ।
उसके प्रकम्पित कर्ण युगल मानो कामदेव के हिंडोले थे । चचल उमियो से आपूरित नयन कचोले, सुन्दर विपैले फूल की तरह प्रफुल्लित कपोल वालि, शख की तरह सुडौल, सुचिक्करण निर्मल कठ, उसके उरोज शृगार के के स्तवक थे । मानो पुष्पधन्वा कामदेव ने विश्व विजय के लिए अमृत कुम्भो की स्थापना की थी। नव यौवन से विहँसती हुई देह वाली, प्रथम प्रम से उल्लसित रमणी अपने सुकुमार चरणो के अशिक्षित पायल की रुनझुन से दिशामो को चैतन्य करती हुई मुनि के पास पहुची। वेश्या ने अपने हाव भाव से मुनि को वशीभूत करने का बहुत प्रयत्न किया किन्तु मुनि का हृदय उस तप्त लोहे की तरह था जो उसकी बात से विध न सका।
(मुनि स्थूलभद्र की कथा) सुर्दशना नाम की पालकी की सुन्दरता का उल्लेख
उस समय वह सुदर्शना आकाश और उत्तम स्त्री के समान जान पडती थी । क्योकि जिस प्रकार आकाश अतिशय चमकीले तारानो और नक्षत्रो की शोभा से दैदीप्यमान रहता है और उत्तम स्त्री ताराओ के समान चमकीले रत्नो की प्रभा से दैदीप्यमान रहती है उसी प्रकार पालकी भी चौतर्फी जडे हुए तारो के समान चमकीले रलो से दीप्त थी। आकाश चचल चामरो के समूह के समान हस-पक्तियो से दैदीप्यमान एव उज्वल रहता है
और स्त्री चामरो के समूह तथा हस पक्ति के समान उत्तम वस्त्रो से उज्ज्वल रहती है, पालकी भी हस पक्ति के समान चचल चमर और उत्तम वस्त्र से मनोहर थी । आकाश सूर्य मडल के तेज से समस्त दिशामो को प्रकाशित करने वाला होता है, और स्त्री दर्पण के समान अखड दीप्ति से युक्त मुख वाली होती है, उसी प्रकार पालकी भी चारो ओर लगे हुए अनेक मणिमयी दर्पणो के प्रकाश से समस्त दिशाम्रो को प्रकाशमान करती थी। आदि-आदि ।
(हरिवश पुराण पृष्ठ १३०)