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________________ जैन कथानो मे समुद्र यात्राएँ । देखदे नाव उछलने लगी। उसके तख्ते टूटकर गिरने लगे, जोडे फटने लगी, कीले गिरने लगी, नाव की रस्सियाँ टूट गयी, पतवारे जाती रही, ध्वजा के उण्डे नष्ट हो गए । नाव एक पहाड से टकराकर चूर-चूर हो गयी। माल असवाव समुद्र में डूब गया और व्यापारियो को अपने प्राणो से हाथ धोना पडा। (माकन्दी पुत्रो की कहानी-दो हजार वर्ष पुरानी कहानियॉ-ले० डॉ० जगदीश चन्द्र जैन ) ज्ञात धर्म की दो कथामो से भी प्राचीन भारतीय जहाजरानी पर काफी प्रकाश पडता है । एक कहानी मे कहा गया है कि चम्पा मे समुद्री व्यापारी (नाव वार्पण याग) रहते थे। ये व्यापारी नाव द्वारा गरिणम (गिनती) धरिम (तील) परिच्छेद्य तथा मेय (नाप) की वस्तुअ' का विदेशो से व्यापार करते थे । चम्पा से यह सब माल बैल-गाडियो पर लाद दिया जाता था। यात्रा के समय मित्रो और रिस्तेदारो का भोज होता था । व्यापारी सबसे मिल मिलाकर शुभ मुहूर्त मे गभीर नाम के बदर (पोयपत्तण) की यात्रा पर निकल पडते थे । बन्दरगाह पर पहुच कर गाडियो पर से सब तरह का माल उतार कर जहाज पर चढाया जाता था और उसके साथ ही खाने-पीने का सामान जैसे चावल, आटा, तेल घी, गोरस, मीठे पानी की दोडियाँ, औषधियाँ तथा वीमारो के लिए पथ्य भी लाद दिये जाते थे। समय पर काम आने के लिए पुयाल, लकडी, पहनने के कपडे, अन्न, शस्त्र तथा बहुत सी बस्तुएँ और कीमती माल भी साय मे रख लिये जाते थे। जहाज छूटने के समय व्यापारियो के मित्र और सम्बन्धी शुभकामनाएँ तथा व्यापार मे पूरा फायदा करके कुशल पूर्वक लौट आने की हार्दिक इच्छा प्रकट करते थे। व्यापारी समुद्र और वायु की पुष्प और गध द्रव्य से पूजा करने के बाद मस्तूलो पर पताकाएँ चढा देते थे जहाज छूटने के पहले वे राजाज्ञा भी ले लेते थे । मगल वाद्यो की तुमुल ध्वनि के बीच व्यापारी जहाज पर सवार होते थे।" (जैन साहित्य में यात्री और सार्थवाह' शीर्षक निवन्ध से साभार) एक दूसरी कहानी मे कहा गया है कि सामूहिक विपत्तियो के समय व्यापारी स्नानादि करके इन्द्र और स्कन्द की पूजा किया करते थे। ऐसी सैकडो जैन-कथाएँ है जिनमे समुद्र-यात्रानो के बडे रोचक वर्णन प्रस्तुत किए गए है। कई कथानो मे पोत निर्माण कला का भी उल्लेख हुआ है । इन कहानियो से यह भी ज्ञात होता है कि इस देश में विदेशो के दास दासियो की अच्छी खपत थी तथा यहाँ के हाथी दांतो की दूरस्थ देशो मे अच्छी माग थी । कतिपय कथाएँ बताती है कि इस देश मे बाहर से आए
SR No.010268
Book TitleJain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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