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जैन - कथाओ का सास्कृतिक अध्ययन
वीजाय १४ पश्चिम बीजाय १५ पश्चिमी गर्जभ १६ उत्तरी गर्जभ ( श्री सम्पूर्णानन्द अभिनन्दन ग्रन्थ से साभार ) "
यहा जैन कथाग्रो के कुछ उद्धरण प्रस्तुत किये जाते है जिनका सम्बन्ध समुद्र यात्रात्रो से है । इनसे स्पष्ट होता है कि सागर यात्राएँ कितनी कष्टप्रद एव विषमता पूर्ण होती थी साथ ही साथ ये यात्राएँ यह भी बताती है कि पुरातन काल मे भारतीय व्यापार वडा समृद्ध था तथा इस विशाल श्री सम्पन्न देश मे सुगन्धित द्रव्य, मनोरम वस्त्र, रत्न, खिलौने आदि बाहर जाते थे और बहुत से सुरभित पदार्थ, रत्न, सुवर्ण आदि अन्य देशो से इस देश मे थे । इन जल-निधि यात्राओ से यह भी प्रकट होता है कि वर्तमान काल की भाँति प्राचीन काल मे भी व्यापारी नियमित कर नही चुकाते थे और चोरी से माल का निर्यात भी करते थे ।
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भविष्यदत्त का भाई बधुदत्त व्यापार कर जहाजो मे बहुत सा माल खजाना लाद कर लौट रहा था कि मार्ग मे सबका सव माल चोरो ने लूट लिया । भविष्य दत्त की कथा पुण्याश्रव कथाकोप पृ, २३०
मत करो ।
यहाँ
पर नही ।
मे
गए। वहाँ
- उसके बाद चारुदत्त के मामा ने कहा कि मेरे पास सोलह करोड का द्रव्य है सो तुम उसे लेकर काम-काज चलाओ और कुछ चिन्ता चारुदत्त ने कहा व्यापार अन्य देशो मे अच्छा हो सकता है सिद्धार्थ और चारुदत्त व्यापार करते हुए प्रियगुवेला नगर चारुदत्त के पिता भानु का सुरेन्द्रदत्त नाम का मित्र रहता था । वह इन दोनो को द्वीपान्तर व्यापार के लिए ले गया । बारह वर्ष मे असीम द्रव्य कमाया । उसको लेकर दोनो घर को लौट रहे थे कि अचानक समुद्र मे जहाज फट गया । बहते हुए लकडी के टुकडो का सहारा पाकर बडी कठिनता से दोनो प्राण बचाकर किनारे ग्रा लगे ।
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(अर्द्ध दग्ध पुरुष और बकरे की कथा - पुण्याश्रव कथाकोष पृष्ठ ८२ ) चम्पा नगरी मे माकन्दी नाम का एक बडा व्यापारी रहता था । उसके जिन पालित और जिन रक्षित दो पुत्र थे । माकन्दी के दोनो पुत्र बडे चतुर और बढे साहसी थे । उन्होने लवण समुद्र ( हिन्द महासागर की ग्यारह वार यात्रा कर बहुत सा धन सचित किया था। एक बार जिन पालित और जिन रक्षित ने सोचा कि एक बार फिर से समुद्र यात्रा कर धन माता-पिता के विरोध करने पर भी ये दोनो अपनी नाव मे बहुत सा माल भरकर विदेश को चल दिये । कुछ दूर पहुंचने पर श्राकाश मे वादल घिर आए, बादल गरजने लगे, विजली कडकने लगी और हवा चलने लगी । देखते
कमाना चाहिए ।